रेसलिंग डे: कुश्ती में भारत को पहचान दिलाने वाले सुशील ने देश को किया शर्मसार

नई दिल्ली महाबली सतपाल हमेशा कहा करते थे कि उनका एक ही सपना है...ओलिंपिक में भारत को कुश्ती का मेडल दिलाना। पहलवान योगेश्वर दत्त और उनके दो ऐसे पट्ठे थे, जिनके जरिए उन्हें अपने सपने को साकार रूप देने का भरोसा था। योगेश्वर जख्मी रहने लगे तो उम्मीदों का बोझ सुशील के कंधों पर आ गया। पेइचिंग ओलिंपिक 2008 में सुशील पहले ही राउंड में यूक्रेन के एंड्री स्टैडनिक से हार गए। एकबारगी कोच सतपाल समेत भारतीय कुश्ती जगत मायूस हो गया। स्टैडनिक फाइनल में पहुंचे तो सुशील को रेपचेज राउंड खेलने का मौका मिल गया, जिससे वह ब्रॉन्ज मेडल जीत गए। भारतीय कुश्ती के इतिहास में 1952 में खशाबा दादा साहेब जाधव के बाद यह दूसरा मेडल था। बन गए ब्रैंड एंबेसडर सुशील के इस मेडल से कभी माटी में खेले जाने वाले कुश्ती ने देश में जबर्दस्त उछाल मारी। गांव वालों का खेल माने जाने वाले रेसलिंग में ग्लैमर का तड़का लग गया। सुशील खेल के ब्रैंड एंबेसडर बन गए। लोग अपने बच्चों को पहलवान बनाने के लिए पहल करने लगे। वीरान हो चुके अखाड़ों मे कतार लगने लगी। सुशील खुद बड़े स्टार बन चुके थे। वर्ल्ड चैंपियनिशिप 2010 में गोल्ड जीतने से सुशील का कद भारतीय कुश्ती में और बढ़ गया। वर्ल्ड चैंपियन बनने वाले वह पहले और इकलौते भारतीय थे। सुशील पर इनाम और इकरामों की लगातार बारिश हो रही थी। सरकारों से लेकर कॉरपोरेट जगत उन्हें हाथों हाथ ले रहे थे। गुरु ने बनाया दामाद नजफगढ़ के बापरोला के रहने वाले सुशील के पिता दीवान सिंह एमटीएनल में ड्राइवर थे। 1983 में जन्मे सुशील ने महज 14 साल की उम्र में कुश्ती को गले लगा लिया था। दिल्ली में अक्टूबर 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स में सुशील ने गोल्ड जीता। अचानक ऐलान हुआ कि सुशील गुरु सतपाल की बेटी सावी से शादी करने जा रहे हैं। नवंबर 2010 में सगाई हुई और फरवरी 2011 में बाहरी दिल्ली के एक फार्म हाउस में शादी हो गई। सतपाल से उस वक्त इस पत्रकार ने कहा कि आपने थोड़ी जल्दी कर दी, लंदन ओलिंपिक का इंतजार करते, क्योंकि सुशील गोल्ड ला सकते थे। आपने शादी के बंधन में उलझा दिया। तब बेटी को रखा अलग महाबली उस वक्त मुस्कुराए, लेकिन बोले कुछ नहीं। लंदन ओलिंपिक में सुशील गए तो सिल्वर मेडल जीतकर भारतीय कुश्ती का परचम लहरा दिया। गुरु सतपाल को जब दिल्ली से कॉल किया तो उन्होंने बड़ी साफगोई से कहा था कि आज अगर मेडल नहीं आता तो मैं आपका गुनहगार होता। आपको एक बात बता दूं कि इस मेडल के लिए मैंने बेटी को सुशील से काफी दिन तक दूर रखा था। महाबली काफी खुश थे, योगेश्वर दत्त ने इसी ओलिंपिक में रेपचेज के जरिए ब्रॉन्ज जीतकर सतपाल और छत्रसाल स्टेडियम की शान में चार चांद लगा दिए थे। लेकिन इसी ओलिंपिक से छत्रसाल अखाड़े में काली छाया पड़ गई थी। लंदन में खिंची लकीरलंदन ओलिंपिक की कोचिंग टीम में दिवंगत हो चुके छत्रसाल स्टेडियम के यशवीर डबास भी थे। योगेश्वर और सुशील की खूबियों और खामियों से वह परिचित थे, इसलिए उन्हें कोचिंग टीम का हिस्सा बनाया गया था। सुशील 2010 में वर्ल्ड चैंपियन बने तो यशवीर को वर्ल्ड रेसलिंग ऑर्गनाइजेशन फीला ने बेस्ट कोच के अवॉर्ड से नवाजा था। लंदन में जब सुशील और योगेश्वर मेडल के करीब पहुंचे तो यशवीर को उनकी बाउट से हटा दिया गया। भारतीय कुश्ती फेडरेशन के तत्कालीन सचिव राज सिंह ने खुद कोच की भूमिका संभाल ली। छत्रसाल की झोली में दो मेडल जरूर थे, लेकिन कोच यशवीर की आंखों में अपमान के आंसू। सपना हुआ था साकारसतपाल का सपना पूरा हो चुका था। एशियाड 1982 के इस गोल्ड मेडलिस्ट का कहना था कि ओलिंपिक मेडल जीतकर अपने गुरु हनुमान को श्रद्धांजलि देना उनका लक्ष्य था। रोशनारा पार्क इलाके के बिड़ला व्यायामशाला से देश को कई दिग्गज पहलवान देने वाले गुरु हनुमान के मन में ताउम्र एक ही कसक रही कि उनका कोई पट्ठा ओलिंपिक मेडल नहीं ला सका। सतपाल ने गुरु की इसी कसक को मिटाने के लिए छत्रसाल में कुश्ती की अलख जगाई थी। यह देश का इकलौता अखाड़ा है, जिसे ओलिंपिक का एक सिल्वर और दो ब्रॉन्ज मेडल जीतने का गौरव प्राप्त है। वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड भी सिर्फ देश के इसी अखाड़े के नाम है। सुशील को सौंपी सल्तनतसुशील के डबल ओलिंपिक मेडल और योगेश्वर के ब्रॉन्ज मेडल से छत्रसाल स्टेडियम का भारतीय कुश्ती ही नहीं बल्कि देश में दबदबा कायम हो गया। लेकिन महाबली सतपाल का जोड़ा हुआ कुनबा बिखरने लगा। पहले यशवीर छत्रसाल से अलग किए गए। सतपाल 2015 में रिटायर हुए तो अपने दबदबे के दम पर उन्होंने सुशील को रेलवे से डेप्युटेशन पर लाकर अपनी कुर्सी पर बिठा दिया। सुशील का कद काफी बढ़ गया था। कभी वह योगेश्वर के पैर छूना सम्मान समझते थे। संबंधों में खिंचाव आ गया। द्रोणाचार्य अवॉर्डी कोच रामफल से बदसलूकी हुई तो योगेश्वर और रामफल दोनों छत्रसाल छोड़ गए। कोच वीरेंद्र मान भी चलते बने। ...जो भटक गया राहजानकार बताते हैं कि बचपन के कोच और आदर्श रहे गुरु भाई अलग हुए तो सुशील की संगत गलत लोगों से हो गई। वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर सुंदर भाटी, दिल्ली-हरियाणा के गैंगस्टर्स नीरज बवानिया, मकोका में बंद उसका मामा पूर्व विधायक रामबीर शौकीन, दिवंगत हो चुका राजीव उर्फ काला असौदा, संदीप उर्फ काला जठेड़ी के साथ जुड़ने लगा। सुशील राह भटक गए। अब लॉरेंस बिश्नोई गैंग की कमान संभाल रहा काला जठेड़ी अपने करीबी जयभगवान उर्फ सोनू महाल के अपमान का बदला लेने के लिए सुशील के पीछे पड़ा है। भारतीय इतिहास के जिस सर्वश्रेष्ठ पहलवान का रेसलिंग डे 23 मई के दिन सम्मान होना चाहिए था, वह पुलिस कस्टडी में मुंह छुपाए घूम रहा है। इसलिए यह भारतीय कुश्ती का काला दिन है...!


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रेसलिंग डे: कुश्ती में भारत को पहचान दिलाने वाले सुशील ने देश को किया शर्मसार रेसलिंग डे: कुश्ती में भारत को पहचान दिलाने वाले सुशील ने देश को किया शर्मसार Reviewed by Ajay Sharma on May 23, 2021 Rating: 5

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