खेल जा सिम सिम: खेलों में यूं संवारें अपना करियर

नई दिल्ली बच्चे सिर्फ पढ़ाई से ही नहीं, खेल-कूद कर भी नवाब बन रहे हैं। नाम कमा रहे हैं। यही वजह है कि आज अभिभावक अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला कराने के साथ ही वहां की स्पोर्ट्स ऐक्टविटी में काफी दिलचस्पी लेते हैं। कई पैरंट्स तो अपने बच्चों को अच्छे स्पोर्ट्स कोचिंग सेंटर में भी भेजते हैं। आज स्पोर्ट्स में इतनी संभावनाएं बढ़ गई हैं कि इससे आगे चलकर न सिर्फ अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल सकता है बल्कि जॉब मिलने में भी आसानी होती है। वहीं फिटनेस बनाने में भी स्पोर्ट्स काफी फायदेमंद है। कैसे करें शुरुआतआजकल सभी स्कूलों में स्पोर्ट्स को जरूरी कर दिया गया है यानी अगर पढ़ाई के साथ-साथ खेलना भी चाहते हैं तो इसकी शुरुआत के लिए स्कूल सबसे अच्छा माध्यम है। वैसे भी जब कोई बच्चा खेल में अपना करियर शुरू करता है तो उसे सबसे पहले स्कूल स्तर पर ही खुद को साबित करना होता है। जैसे कि स्कूल फेडरेशन गेम्स, सीबीएसई, केंद्रीय विद्यालय या फिर बड़े-बड़े संस्थान रीजनल और नैशनल लेवल पर गेम्स आयोजित करते हैं। जब कोई बच्चा रीजनल या फिर स्कूल फेडरेशन के गेम्स में अच्छा करता है तो उसे नैशनल खेलने के लिए भेजा जाता है। नैशनल कैंप है पहली सीढ़ीअंतरराष्ट्रीय टूर्नमेंट में जगह बनाने के लिए नैशनल कैंप को हम पहली सीढ़ी कह सकते हैं। स्कूल से जब बच्चे निकलते हैं तो यूनिवर्सिटी और जिला स्तर पर उन्हें खेलने का मौका मिलता है। कई बार सीधे स्टेट टूर्नमेंट में भी खेलने को मिल जाता है। स्टेट में जो बच्चे पहले से चौथे स्थान पर रहते हैं, उन्हें नैशनल में शामिल होने का मौका मिलता है। नैशनल में जो बच्चा मेडल जीतता है, उसे नैशनल कैंप में जगह मिल जाती है। यह अंतरराष्ट्रीय टूर्नमेंट में जगह बनाने के लिए पहला पायदान है। साई करता है कैंपों का आयोजनयह कैंप स्पोर्ट्स ऑथोरोटी ऑफ इंडिया (साई) के द्वारा आयोजित करवाई जाता है जो कुछ दिनों या फिर महीनों का होता है। बच्चों को वहीं रहकर प्रैक्टिस करनी होती है। यहां उसे देश के सर्वश्रेष्ठ कोच के तहत ट्रेनिंग करने का मौका मिलता है। यही बच्चे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लायक बनते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हरेक उम्र स्तर के टूर्नामेंट होते हैं। जैसे कि कैडेट, जिसे हम यूथ वर्ल्ड चैंपियनशिप भी कहते हैं। एशिया और विश्व स्तर पर आयोजित होते हैं टूर्नमेंट इसमें अंडर-17 और अंडर-19 टूर्नामेंट होते हैं। यह एशिया और विश्व स्तर पर आयोजित होते हैं। हालांकि कैंप में रहने वाले बच्चों के लिए पढ़ाई भी जारी रख पाना उतना आसान नहीं होता है। ऐसे में उनके लिए पत्राचार के माध्यम से पढ़ाई जारी रखना अच्छा रहता है। क्लास में कम उपस्थिति की समस्या से बच जाते हैं। स्पोर्ट्स के लिए हैं खास स्कूल आज कुछ स्कूल ऐसे हैं, जहां बच्चों को पढ़ाई के साथ ही स्पोर्ट्स की शिक्षा भी खास तौर पर दी जाती है। इनमें मोतीलाल नेहरू स्कूल ऑफ स्पोर्ट्स, राई, सोनीपत, हरियाणा सरकार ने की। इस स्कूल की स्थापना 1973 में हरियाणा सरकार द्वारा की गई थी। यह एक आवासीय स्कूल है। ज्यादा जानकारी के लिए वेबसाइट www.mnssrai.com देख सकते हैं। आर्मी बॉय स्पोर्ट्स कंपनी ऐसा ही एक स्कूल है 'आर्मी बॉय स्पोर्ट्स कंपनी'। यह स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) के द्वारा संचालित होता है, जिसकी शाखाएं लगभग पूरे देश में हैं। इनमें जबलपुर, पुणे, अहमदनगर, शिलांग, रानीखेत आदि खास हैं। यहां 8-14 साल के लड़कों को दाखिला मिलती है। 16 साल की उम्र के बाद बच्चों को आर्मी में भर्ती किया जाता है। अगर बच्चा खेल के साथ ही एंट्रेंस टेस्ट भी पास कर लेता है तो उसकी भर्ती ऑफिसर रैंक में हो जाती है। यहां फिजिकल टेस्ट के आधार पर बच्चों की भर्ती की जाती है। यहां स्वीमिंग जैसे खेल में तो 7 साल में ही नामांकन मिल जाता है। नोट: ये दोनों आवासीय स्कूल हैं, जहां बच्चों को 12वीं तक स्कूली शिक्षा के साथ ही खेल की शिक्षा भी दी जाती है। यहां बच्चों को दिन में पढ़ाई और शाम को खेल की ट्रेनिंग दी जाती है। 'खेलों इंडिया से बदलाव' पहले ऐसा देखा जाता था कि दूर-दराज के बच्चों को खुद को साबित करने का मौका नहीं मिलता था। उन्हें अपना टैलंट दिखाने के लिए उचित प्लैटफॉर्म नहीं मिलता था, लेकिन जब से 'खेलो इंडिया' की शुरुआत हुई है, हर बच्चे को खुद को साबित करने का मौका मिल जाता है। अब हर स्कूल की अपनी टीम होती है। हर स्तर से बच्चे आगे निकलते हैं। अगर कोई बच्चा अच्छा कर रहा है तो भारत सरकार की 'खेलो इंडिया' स्कीम के तहत बच्चों को सालाना 5 लाख रुपये देकर विभिन्न मदों में मदद की जाती है। इसके अलावा कई संस्थान हैं जो बच्चों को स्पॉन्सर करते हैं। ऐसे बच्चों की यूनिवर्सिटी और इंटर कॉलेज स्तर पर शिक्षा भी लगभग मुफ्त में हो जाती है। कई ऐसे स्कूल भी हैं जो खेल में बेहतर कर रहे बच्चों की फीस माफ कर देते हैं। सरकार की एक 'टारगेट ओलिंपिक पोडियम सिस्टम (TOPS)' स्कीम है, जिसके तहत अच्छा करने वाले खिलाड़ियों को 50 हजार रुपये महीने की आर्थिक मदद दी जाती है। साथ ही सभी टूर्नामेंट खेलने में आने वाले उसके सभी खर्च भी सरकार ही वहन करती है। ऐसे खिलाड़ियों को सरकार अपने खर्चे पर ट्रेनिंग के लिए बाहर भेजती है। क्या है खेलो इंडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है और 2 साल पहले शुरू हुआ है। इसमें मुख्य रूप से स्कूल गेम्स फेडरेशन, सीबीएसई नैशनल, नैशनल फेडरेशन से बच्चों को चुना जाता है। खेलो इंडिया से फायदा कैसे लें खेलो इंडिया में मेडल जीतने पर 5 लाख रुपये की सहायता राशि मिलती हैं जो अगले 8 साल तक दी जाती हैं। हालांकि, इसके लिए हर साल असेसमेंट होता है! एक हजार बच्चों को अभी यह हर साल मिल रहा है। अच्छी बात यह है कि अब बच्चों की संख्या को बढ़ाकर 2000 कर दिया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य 2024 और 2028 ओलिंपिक है। ऐडमिशन में फायदा जिन बच्चों का स्कूल स्तर पर स्पोर्ट्स में प्रदर्शन अच्छा रहता है, उन्हें यूनिवर्सिटी में स्पोर्ट्स कोटे से ऐडमिशन भी आराम से मिल जाता है। आज हरेक यूनिवर्सिटी के कॉलेजों में स्पोर्ट्स कोटे से ऐडमिशन के लिए सीटें रिजर्व होती हैं। इसके लिए कुछ मापदंड निर्धारित हैं, लेकिन राज्य स्तर तक पहुंचने वाले खिलाड़ी को कॉलेजों में ऐडमिशन मिलने में ज्यादा परेशानी नहीं होती। हालांकि, इसके लिए उन्हें ट्रायल से गुजरना पड़ता है। ट्रायल में उन्हें नंबर दिए जाते हैं। यह नंबर और 12वीं में हासिल किए गए नंबरों के आधार पर मेरिट लिस्ट बनाई जाती है। डीयू में भी ऐडमिशन: इस बार डीयू में स्पोर्ट्स कोटे से ऐडमिशन के लिए 2 कैटिगरी निर्धारित की गई थी। सुपर कैटिगरीइसके तहत बिना ट्रायल के ऐडमिशन लिया गया। इसमें वे बच्चे आते हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जैसे कि ओलिंपिक, एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स, वर्ल्ड कप, वर्ल्ड चैंपियनशिप, एशियन चैंपियनशिप, साउथ एशियन गेम्स, पैरालिंपिक गेम्स इत्यादि में देश का प्रतिनिधित्व किया हो। ट्रायल बेसिसइसमें उन बच्चों का ट्रायल लिया जाता है, जिन्होंने स्कूल लेवल पर या फिर जूनियर लेवल पर टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया हो। हालांकि ध्यान रखें कि सभी खेलों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। इसमें मुख्य रूप से नॉन ओलिंपिक गेम्स को रखा गया है। हालांकि, इस बार डीयू ने साइक्लिंग को भी इससे बाहर रखा था। जॉब में मिलती है मदद अगर स्पोर्ट्स कोटे से केंद्र सरकार का जॉब लेना चाहते हैं तो...• आपके पास कम-से-कम राष्ट्रीय स्तर का मेडल होना चाहिए। • इसके लिए आपकी उम्र 18 से 25 साल के बीच होनी चाहिए। • कुछ खास मामलों में 16-17 की उम्र में भी जॉब मिल जाती है। • इस बात का ध्यान रखें कि जॉब के लिए यह बिलकुल भी जरूरी नहीं है कि इसके लिए आपके पास अंतरराष्ट्रीय स्तर का ही मेडल हो। राज्य स्तर के मेडल भी स्टेट लेवल के जॉब दिलाने के लिए काफी हैं।• राज्य स्तर के मेडल से आप राज्य सरकार के तहत काम करने के योग्य होते हैं।• यहां इस बात का ध्यान रखना होगा कि नैशनल लेवल के मेडल से केंद्र के साथ राज्य में जॉब करने के लिए भी आप योग्य हो जाते हैं। • सरकारी नौकरियों में लगभग हर विभाग में स्पोर्ट्स कोटे के लिए सीट रिजर्व कर दी गई हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर या फिर राष्ट्रीय स्तर पर भी बेहतर प्रदर्शन करने पर नौकरी लगभग पक्की हो जाती है। • राज्य सरकार भी अपने यहां के खिलाड़ियों को पुलिस आदि विभागों में नौकरी देती है। कुछ दूसरे ऑप्शंस भी नौकरी के अलावा आप दूसरे क्षेत्रों में भी कोशिश कर सकते हैं जैसे कि आज स्पोर्ट्स साइंटिस्ट (साई में यह एक पोस्ट होती है। इनका काम है डिवेलपमेंट ऑफ स्पोर्ट्स टेक्नीक। इनमें डॉक्टर्स भी शामिल होते हैं जो खिलाड़ियों को चोट से बचने का तरीका सिखाते हैं।) की मांग काफी है। इनके अलावा फिजियोथेरपिस्ट, स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट और स्पोर्ट्स मैनेजमेंट की काफी डिमांड है। कहां-कहां मिलती है नौकरी स्पोर्ट्स कोटे से आजकल लगभग हर सरकारी विभाग में नौकरियां मिल रही हैं। कुछ प्राइवेट कंपनियां भी अपने यहां स्पोर्ट्स कोटे से नौकरियां देती हैं। केंद्र सरकार में सबसे ज्यादा रेलवे और सेना में खिलाड़ियों की बहाली होती है। इसके अलावा ओएनजीसी, बीएसएफ, पुलिस, बैंकिंग सेक्टर इत्यादि में भर्तियां होती हैं। राज्य सरकारें भी अपने यहां स्पोर्ट्स कोर्ट से खिलाड़ियों का चयन करती हैं। स्पोर्ट्स कोटे से भर्ती के लिए जूनियर-सीनियर नैशनल में मेडल जीतने के बाद ही आप सरकारी नौकरी पाने के पात्र हो जाते हैं। स्टेट चैंपियनशिप में मेडल जीतने पर भी आपको कई जगह फोर्थ ग्रेड की नौकरी मिल सकती है। मेडल लाओ, प्रमोशन पाओ स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी पाने वालों के लिए प्रमोशन का जरिया भी मेडल ही बनता है। अगर हम रेलवे की बात करें तो यहां नैशनल में लगातार 3 बार मेडल जीतने वाले को प्रमोशन दिया जाता है। • ओलिंपिक में भागीदारी भर से आपको प्रमोशन मिलना तय हो जाता है। • कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स, वर्ल्ड कप, वर्ल्ड चैंपियनशिप जैसे अहम टूर्नामेंट में मेडल जीतने पर प्रमोशन मिल जाता है। • मेडल जीतने पर ऑफिस से 330 दिनों की छुट्टी भी मिल जाती है। इस दौरान कैंप में रहना पड़ता है, जहां आपके रहने-खाने इत्यादि का खर्चा साई (Sports Authority of India) या फेडरेशन उठाती है। खेल के बाद भी करियर कुछ खिलाड़ी ऐसे भी होते हैं जो अपने पूरे करियर के दौरान पूरा ध्यान सिर्फ खेल पर ही लगाते हैं। वे किसी तरह की नौकरी वगैरह नहीं करते। ऐसे खिलाड़ियों के सामने खेल को अलविदा कहने के बाद जिंदगी में एक खालीपन-सा आ जाता है। लेकिन अब अमूमन ऐसा नहीं होता। संन्यास के बाद भी वे उसी फील्ड में अपनी सेवाएं दे सकते हैं, जिनमें उनकी विशेषज्ञ्रता होती है। हां, यह सेवा मैदान के बीच नहीं, मैदान के बाहर होती है। मसलन: •कोच •सहायक कोच •कॉमेंटेटर •टीम मैनेजर •टीम प्रेसिडेंट •जनरल मैनेजर •ऐथलेटिक्स ट्रेनर •स्टेडियम मैनेजर •स्पोर्ट्स इवेंट्स कोऑर्डिनेटर•इक्विटपमेंट मैनेजर •स्कोरबोर्ड ऑपरेटर •फिजिकल एजुकेशन टीचर •स्पोर्ट्स राइटर आदि। व्यक्तिगत और टीम इवेंट का क्राइटेरिया अलग चाहे स्पोर्ट्स कोटे से ऐडमिशन की बात हो या फिर नौकरी की, व्यक्तिगत और टीम इवेंट के लिए अलग-अलग क्राइटेरिया निर्धारित किए जाते हैं। व्यक्तिगत इवेंटइसमें ऐसे खेल शामिल होते हैं, जिनमें पूरे टीम के प्रदर्शन की बात नहीं होती बल्कि व्यक्तिगत प्रदर्शन ही सबकुछ होता है। मसलन:- •रेसलिंग •बैडमिंटन •टेनिस •आर्चरी •शूटिंग आदि। इन खेलों में अमूमन खिलाड़ियों के व्यक्तिगत प्रदर्शन को ही आधार माना जाता है। दूसरी तरफ क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, कबड्डी आदि टीम इवेंट में खिलाड़ियों को समूह में प्रदर्शन करना पड़ता है। अगर हम देश में स्पोर्ट्स कोटे से सबसे ज्यादा बहाली करने वाली संस्था रेलवे की बात करते हैं तो यहां व्यक्तिगत इवेंट में नैशनल लेवल पर मेडल ही एकमात्र क्राइटेरिया होता है। मेडल के साथ ही खिलाड़ियों की रैंकिंग्स तय की जाती हैं, जिनके आधार पर मेरिट लिस्ट बनती है। दूसरी तरफ टीम गेम में अमूमन सेमीफाइनल तक पहुंचने वाली टीम के खिलाड़ियों को प्राथमिकता दी जाती है। हालांकि, यहां भी गेम के आधार पर क्राइटेरिया बदल जाता है। टीम गेम में अगर हम हॉकी की ही बात करें तो यहां गोल करना ही सिर्फ क्राइटेरिया नहीं होता क्योंकि डिफेंडर को गोल करने के मौके नहीं मिलते हैं। ऐसे में यह देखा जाता है कि आप मैदान पर कितने ऐक्टिव थे। इसके लिए आपके पिछले तीन साल के प्रदर्शन को आधार बनाया जाता है। टीम इवेंट: •क्रिकेट •हॉकी •फुटबॉल •कबड्डी आदि ये हैं काम की वेबसाइटhttps://ift.tt/Yp4Jyi यह खेल मंत्रालय की वेबसाइट है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं के बारे में जानकारी और उनके नियमों को जानने के लिए सबसे प्रामाणिक है। • www.mnssrai.com यह मोतीलाल नेहरू स्कूल ऑफ स्पोर्ट्स, राई, सोनीपत, हरियाणा स्कूल की वेबसाइट है। इस स्पोर्ट्स स्कूल की स्थापना हरियाणा सरकार द्वारा की गई है। • www.kheloindia.gov.in देश में खेल को बढ़ावा देने के लिए इस स्कीम को लागू किया गया है। इससे जुड़ी पूरी जानकारी इस वेबसाइट् पर उपलब्ध है। खेल और पढ़ाई में संतुलन कैसे बनाएंहां यह सच है कि खेल और पढ़ाई साथ चलाने के लिए कुछ ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। मोबाइल और टीवी से दूरी बनानी पड़ती है। जिस तरह पढ़ने से दिमाग खुलता है, उसी तरह खेल से जीतने का जज्बा सीखने को मिलता है। अगर कोई बच्चा अच्छा खेलता है तो वह अच्छा स्टूडेंट भी हो सकता है। इसके लिए टाइम मैनेजमेंट अहम है। हालांकि नैशनल या इंटरनैशनल स्तर पर जगह बनाने के बाद खिलाड़ियों के लिए अमूमन पत्राचार के माध्यम से अपनी पढ़ाई जारी रखना अच्छा रहता है। उम्र के अनुसार गेम और कोचिंग कब शुरू करें अमूमन 9-10 साल की उम्र में बच्चों और उनके पैरंट्स को समझ आ जाती है कि वह किस खेल में अच्छा कर सकता है। हालांकि, उसे 5-6 साल की उम्र में किसी-न-किसी खेल में डाल देना चाहिए। 5 बार की वर्ल्ड चैंपियन शूटर मनु भाकर ने बचपन में लगभग हर खेल में ट्राई किया। 10वीं कक्षा में पहली बार शूटिंग में हाथ आजमाया और उसे ही अपना करियर बना लिया। खेलो, मगर ध्यान से! कई बार ऐसा देखा गया है कि खिलाड़ी खुद को अंतरराष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी कहलाने के लिए कुछ ऐसे खेल खेलने लग जाते हैं या ऐसे फेडरेशन के फेर में पड़ जाते हैं, जिन्हें भारत सरकार से मान्यता नहीं मिली होती। कुछ निजी संस्थान बच्चों से ही पैसा लेकर पड़ोसी देश भूटान, नेपाल या बांग्लादेश में फ्रेंडली अंतरराष्ट्रीय मैच आयोजित करवाते हैं। बच्चे वहां मेडल जीतने के बाद सरकारी नौकरी के लिए क्लेम करने लग जाते हैं, जो कि वैध नहीं होता। ऐसे में ध्यान रहे कि आप उसी फेडरेशन या बोर्ड के तहत टूर्नामेंट में खेलने जाएं, जिन्हें साई या फिर इंडियन ओलिंपिक असोसिएशन (आईओए) से मान्यता मिली हुई हो। साफ है, आप जिस भी टूर्नामेंट में खेलने जाएं, उसकी वैधानिक मान्यता को एक बार जरूर देख लें। ऐसा ना हो कि कहीं आप फर्जीवाड़े का शिकार हो जाएं। फेडरेशन या खेल से जुड़ी प्रामाणिक जानकारी के लिए www.yas.nic.in या https://ift.tt/Yp4Jyi देख सकते हैं। चंद स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटीज • नैशनल स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी, इम्फाल, मणिपुरwww.nsu.ac.in क्या है खास: यह खेल एवं शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में केंद्र सरकार द्वारा स्थापित पहली सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। यहां वैज्ञानिक तरीके से स्पोर्ट्स की जानकारी दी जाती है। यहां मुख्य रूप से मास्टर्स की पढ़ाई होती है। • नेताजी सुभाष नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स, पटियालाwww.nsnis.org क्या है खास: यह भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) का शिक्षा संस्थान है जोकि पहले राष्ट्रीय खेल संस्थान के नाम से जाना जाता था। यह मुख्य रूप से कोच के लिए है, जिसमें सर्टिफिकेट ऑफ कोचिंग, डिप्लोमा इन कोचिंग और मास्टर इन कोचिंग कोर्स अहम हैं। इसमें ऐडमिशन के लिए आपको नैशनल लेवल पर मेडलिस्ट होना चाहिए। • स्वर्णिम गुजरात स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी, गांधीनगर, गुजरातwww.sgsu.gujarat.gov.in क्या है खास: यहां वर्ष 2014 से फिजिकल एजुकेशन की पढ़ाई हो रही है। ये स्टेट लेवल की यूनिवर्सिटी है। • वाईएमसीए कॉलेज ऑफ फिजिकल एजुकेशन, नंदनम, चेन्नैwww.ymcacollege.ac.in क्या है खास: यह साउथ ईस्ट एशिया का पहला कॉलेज है। यह देश का सबसे पुराना स्पोर्ट्स सेंटर है। अंग्रेजों ने फिजिकल एजुकेशन को बढ़ावा देने के लिए शुरुआत की थी। यहां छोटे-छोटे कोर्स होते हैं, जिनमें 5 और 10 दिनों का कोर्स भी शामिल होता है।


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खेल जा सिम सिम: खेलों में यूं संवारें अपना करियर खेल जा सिम सिम: खेलों में यूं संवारें अपना करियर Reviewed by Ajay Sharma on August 24, 2019 Rating: 5

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