Tokyo Olympics: हर बाधा को पार कर निशा पूरा करने जा रही हैं अपना ओलिंपिक ड्रीम्स

बेंगलुरु जब वह बड़ी हो रही थी तो निशा वारसी के सपने बहुत बड़े नहीं थे। उसकी खेल में हमेशा से दिलचस्पी थी। लेकिन वह ऐसा खेल चुनना चाहती थी जिसका असर उसके माता-पिता के सपनों पर न पड़े। उसका परिवार ज्यादा खर्च नहीं उठा सकता था और खेल के जरिए मिलने वाली नौकरी का हमेशा मददगार होती। ऐसे में निशा ने हॉकी चुनी। अब बात सीधा 2021 की, निशा तोक्यो ओलिंपिक के लिए जा रही हैं। उनका सपना साथी खिलाड़ियों के हाथ थामे पोडियम पर खड़ा होने का है। उनका सपना अपने देश और माता-पिता को गौरवांतवित करने का है। पिछले सप्ताह ही 26 वर्ष पूरे करने वाली यह डिफेंडर जल्द ही अपना पहला ओलिंपिक खेलेंगी। निशा कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली टीम का हिस्सा रहीं प्रीतम रानी सिवाच की सोनीपत स्थित अकादमी से हैं। उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए कई निजी लड़ाइयां भी लड़ी हैं। उच्च स्तर पर खिलाड़ियों को होने वाले आत्म-संदेह- जो कइयों के साथ होता है- के अलावा भी उनके सामने कई परेशानियां आईं। उन सब को पार उन्होंने यहां तक का सफर तय किया। उनके पिता सोहराब अहमद, एक दर्जी थे। लेकिन साल 2015 में उन्हें लकवा मार गया और उन्हें काम छोड़ना पड़ा। उनकी मां महरून एक फोम बनाने वाली कंपनी में काम किया करती लेकिन निशा को रेलवे में नौकरी मिलने के बाद उन्होंने काम छोड़ दिया। कई सामाजिक बाधाएं भी थीं। लेकिन कोच सिवाच ने निशा का साथ दिया। उन्होंने उनके माता-पिता को समझाया। उन्हें निशा को अपने सपने पूरा करने देने के लिए मनाया। हालांकि यह रुकावट कुछ ही समय के लिए थी। निशा ने कहा, 'जिंदगी आसान नहीं थी। मैं खेल को लेकर काफी जुनूनी थी लेकिन हमारा गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा था। मेरे माता-पिता मेरे खेल करियर में निवेश नहीं कर सकते थे। मैंने हॉकी इसलिए चुनी क्योंकि हमें उपकरणों पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़े।' शुरुआत में थोड़ा झिझकने के बाद महरून अपनी बेटी के लिए बड़ी ताकत बनीं। निशा चार भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर हैं। उन्होंने बताया, 'मैदान हमारे घर से आधा घंटा दूरी पर है। मुझे अपना घर सुबह 430 बजे छोड़ना पड़ता था। मैं अकेले सफर करने से डरती थी। मेरे पिता मुझे अपनी साइकल पर छोड़ने जाते थे। मेरी मां चार बजे उठकर अपने रोज के काम निपटाने में लग जाती थीं। वह मुझे उठातीं और नाश्ता आदि बनाने में जुट जातीं।' कुछ समय बाद निशा, हरियाणा टीम और फिर रेलवे की अहम सदस्य बन गईं। उनकी कमाई से घर पर जिंदगी थोड़ी आसान हो गई। 2018 में निशा को भारतीय टीम के कैंप के लिए चुना गया लेकिन घर छोड़ने का फैसला आसान नहीं था। उन्होंने कहा, 'मेरे पिता अपनी सभी जरूरतों के लिए हम पर निर्भर हैं। वह अस्पताल में भर्ती होते रहते हैं। मुझे चिंता थी कि क्या मेरे परिवार मैनेज कर पाएगा। मेरे मामा मदद के लिए आगे आए और मेरे परिवार ने हमें चिंता नहीं करने के लिए कहा।' अंतरराष्ट्रीय पटल पर निशा का जलवा थोड़ी देर से दिखाई दिया। वह राष्ट्रीय जूनियर टीम में जगह नहीं बना पाईं। उन्होंने अपना इंटरनैशनल डेब्यू 2019 में हिरोशिमा में FIH फाइनल्स में किया। तब से वह नौ बार भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। बाकी दुनिया की तरह कोरोना महामारी निशा के लिए भी आसान नहीं रही। उन्होंने पिछले डेढ़ साल में से ज्यादातर वक्त स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के साउथ सेंटर में नैशनल कैंप में बिताया। निशा ने बताया, 'यह एक मुश्किल वक्त था। मुझे लगातार अपने परिवार, खास तौर पर अपने पिता की चिंता होती थी। हालात ने मुझे अच्छा प्रदर्शन करने के लिए अधिक प्रतिबद्ध किया है।' निशा के ओलिंपिक में चुने जाने पर उनका परिवार पड़ोस में मिठाइयां बांटकर जश्न मना रहा है। लेकिन निशा के लिए असली लम्हा अभी बाकी है...


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Tokyo Olympics: हर बाधा को पार कर निशा पूरा करने जा रही हैं अपना ओलिंपिक ड्रीम्स Tokyo Olympics: हर बाधा को पार कर निशा पूरा करने जा रही हैं अपना ओलिंपिक ड्रीम्स Reviewed by Ajay Sharma on July 13, 2021 Rating: 5

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